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उत्तराखंड में दिखी उड़ने वाली गिलहरी माना जाता था विलुप्त।

अंतर्राष्ट्रीय प्रकृति संरक्षण संघ (IUCN) की रेड लिस्ट में शामिल वूल्य नामक इस गिलहरी को आज से 70 साल पहले विलुप्तप्राय मान लिया गया था। Woolly Squirrel प्रजाति की इस गिलहरी की खासियत है कि यह उड़ भी सकती है। ये गिलहरी अपने पंजों में लगे रोएं को पैराशूट की तरह बनाकर उड़ने के लिए इस्तेमाल करती है।करीब 70 साल पहले विलुप्त मान ली गई गिलहरी की एक विशेष प्रजाति उत्तराखंड के गंगोत्री नैशनल पार्क में देखी गई। Woolly Squirrel प्रजाति की इस गिलहरी की खासियत है कि यह उड़ भी सकती है।

किस तरह अलग है और गिलहरी से पेड़ों और झाड़ियों से दूर गिलहरियाँ शायद ही कभी देखी जाती हों। वृक्षों की छालों, कोमल प्रांकुरों, कलिकाओं तथा फलों का ये आहार करती हैं। फल में भी इन्हें अनार सबसे अधिक प्रिय है। सेमल के फूलों का रस पीकर उनके परागण में ये बड़ी सहायक बनती हैं। अभिजनन काल में इनकी मादा दो से लेकर चार तक बच्चे किसी वृक्ष के कोटर या पुरानी दीवार के किसी छिद्र में, अथवा छत में बाँसों के बीच घासपात या मुलायम टहनियों का नीड़ बनाकर, देती हैं। जीवन इनका साधारणत: पाँच छह साल का होता है। आवाज़ चिर्प या ट्रिल सरीखी होती है, जो उत्तेजित अवस्था में यथेष्ट देर तक और बराबर होती रहती है।

आमतौर पर गिलहरियों का शरीर छरहरा, पूंछ बालों से युक्त और आँखें बड़ी होती हैं। उनके रोयें मुलायम व चिकने होते हैं, हालाँकि कुछ प्रजातियों में यह रोयें अन्य प्रजातियों की तुलना में काफी घने होते हैं। इनका रंग अलग-अलग हो सकता है, जो कि अलग-अलग प्रजातियों और एक ही प्रजाति के मध्य भिन्न भी हो सकता है। परंतु यह दुर्लभ प्रजाति अन्य गिलहरी से भिन्न है। और सब से बड़ी खासियत यह है कि यह उड़ सकती है। जबकि अन्य गिलहरी आमतौर पर उड़ नही सकती है। wolly squirrel इसका शरीर ऊँन की तरह झब्बेदार होता है इसे ऊनी उड़न गिलहरी भी कहा जाता है।इसी ऊनी उड़न गिलहरी को हाल ही में देखा गया जिससे कि विलुप्त माना जा चुका था। भूरे रंग की यह गिलहरी पूरी तरह से उन्हें जब झब्बेदार होती।

फॉरेस्ट रिसर्च इंस्टिट्यूट ने इस बात की जानकारी देते हुए बताया, ‘अंतर्राष्ट्रीय प्रकृति संरक्षण संघ (IUCN) की रेड लिस्ट में शामिल इस गिलहरी को आज से 70 साल पहले विलुप्तप्राय मान लिया गया था। एक सर्वेक्षण के अनुसार राज्य के 18 वन डिविजन में से 13 में इस गिलहरी की मौजूदगी पाई गई है। देहरादून में वाइल्डलाइफ इंस्टिट्यूट ऑफ इंडिया के वैज्ञानिकों ने भागीरथ घाटी में भी इस गिलहरी की मौजदूगी की पुष्टि की है। दुर्लभ तस्वीरें भी मिली हैं। ये गिलहरी अपने पंजों में लगे रोएं को पैराशूट की तरह बनाकर उड़ने के लिए इस्तेमाल करती है।