क्या आपको पता है उत्तराखंड में मौजूद है ………………………..

उत्तराखंड का बागेश्वर जिला नैसर्गिक सुंदरता से भरा पड़ा है। यहां अभी भी ऐसी रहस्यमयी जगहें है जहां तक कोई नहीं पहुंच पाया है। जहां तक इंसान पहुंचा है वह जगहें आज भी लोगों को आश्चर्यचकित कर देने के लिए काफी है। ऐसी ही जगह कांडा के पास जोगाबाड़ी में है। यहां की अद्भुत खूबसूरत प्राकृतिक गुफा पर्यटन मानचित्र में नहीं जुड़ पाई हैं। इस गुफा को देखने के लिए अमेरिका, जर्मनी, इंग्लैंड, हालैंड, दक्षिण अफ्रीका आदि देशों के शोधकर्ताओं का दल आ चुका है।


कांडा बाजार से करीब तीन किमी की दूरी पर स्थित जोगाबाड़ी की गुफा पर्यटकों के आकर्षण का प्रमुख केंद्र बन सकती है। इसके अंदर बहता खूबसूरत झरना, छोटी सी झील और वहां बनी मनमोहक आकृतियां प्रकृति की अनूठी धरोहर हैं। इसके बावजूद यह पर्यटकों की नजरों से ओझल है। गुफा का प्रवेश द्वार अत्यधिक संकरा होने के कारण पेट के बल लेटकर जाना पड़ता है, लेकिन गुफा के भीतर प्रवेश करते ही वहां का नजारा आश्चर्य भर देता है। 10 मीटर लंबी, छह मीटर चौड़ी और सात मीटर ऊंची गुफा के अंदरूनी छोर से एक झरना बहता है। जिससे गुफा हमेशा झील की तरह लबालब भरी रहती है। महत्वपूर्ण बात यह है कि इस झरने का पानी गर्मी में भी कम नहीं होता है।
गर्मियों में भी यहां दो फीट तक पानी रहता है। झरने का यह पानी एक संकरे नाले से होता हुआ भद्रकाली नदी में मिल जाता है। इस गुफा में सबसे हैरत में डालने वाली चीजें सफेद और कुछ अन्य रंग की चट्टानों पर बनी आकृतियां हैं। गुफा की दीवारों से लेकर छत तक ऐसी दर्जनों आकृतियां हैं, जो ब्रह्मकमल, शेषनाग, शिव, ब्रह्मा, विष्णु आदि देवी-देवताओं जैसी नजर आती हैं।

पांच साल पहले खोजी गई गुफा

सदियों से अंदर बहते झरने के पानी से चट्टान की परतें घिस जाने के कारण ऐसी आकृतियां बनी हैं। करीब पांच साल पहले इस गुफा को खोजने वाले क्षेत्रवासी अर्जुन माजिला इस स्थल के विकास के लिए लगातार प्रयास कर रहे हैं। दो वर्ष पूर्व पर्यटन विभाग की ओर से इस स्थल के विकास के लिए 45 लाख रुपए का प्रस्ताव शासन को भेजा था। इसमें संपर्क मार्ग, आवासीय इकाई, स्थल सुंदरीकरण आदि सुविधाएं उपलब्ध करानी थी, लेकिन इस मामले में कोई पहल नहीं हुई है।

शोधकर्ताओं का दल पहुंचा जोगाबाड़ी

गुफा कांडा बागेश्वर बाजार से लगभग ढाई किलोमीटर दूर पंगचौड़ा गांव के जोगाबाड़ी-धराड़ी नामक स्थान पर है। मोटर मार्ग से डेढ़ किलोमीटर पैदल चलकर इस गुफा तक पहुंचा जाता है। पिथौरागढ़ स्थित पाताल भुवनेश्वर की भांति ही इस गुफा में अनेकों आकृतियां उभरी हुई हैं। गुफा के भीतर झरना, सरोवर व अन्य आकृतियां हैं। जिससे प्रतीत होता है कि गुफा पौराणिक काल की है। गुफा के भीतर एक फीट ऊंचा शिवलिंग विद्यमान है जिसे एक 22 मुखी नाग छत्र प्रदान कर रहा है। अन्दर ही एक दर्शनीय पानी का झरना है जो यहीं एक विशाल कुंड में समा रहा है। क्षेत्रीय लोग भी इसे पाताल भुवनेश्वर की तर्ज पर धार्मिक पर्यटन के रूप में विकसित करने के लिए प्रयासरत हैं।

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