स्वर्ग से भी सुंदर है “वैली ऑफ फ्लॉवर्स” जानिए कहा है यह? ओर क्या है ख़ा
हम तो सभी को पसंद होते हैं फूलों को नजर भर देखने से ही चेहरे पर मुस्कान आ जाती है फूलों की खूबसूरती इतनी होती है कि हम उसे अपने प्रेमी से तुलना करते हैं। उसे खुशी के मौके पर फूल देते हैं अपना इजहार भी फूल दे कर करते हैं। ऐसे ही एक गांव उत्तराखंड के गढ़वाल क्षेत्र पर बनी फूलों की घाटी बेहद मशहूर है। जहां दूर- दूर से लोग इसे देखने आते हैं। मगर कोरोना वायरस को कारण यहां पर्यटकों के आने पर उन्हें कुछ नियमों का पालन करना होगा। इस घाटी को देखने के लिए सभी लोगों को पहले कोरोना का टेस्ट करवाना जरूरी है। साथ ही उनका टेस्ट करीब 3 दिन या 72 घंटे ही पुराना होना चाहिए। तो चलिए आज हम आपको इस सुंदर व मशहूर फूलों की घाटी के बारे में विस्तार से बताते हैं….

कहा है यह घाटी
फूलों की यह घाटी उत्तराखंड के गढ़वाल क्षेत्र में बनी हुई है। यह घाटी लगभग 87.50 कि.मी वर्ग क्षेत्र में फैली हुई है। सन् 1982 में यूनेस्को द्वारा इस घाटी को राष्ट्रीय उद्यान के रूप में घोषित किया गया था। यह घाटी हिमाच्छादित पर्वतों से घिरी हुई है जो दिखने में बेहद खूबसूरत नजर आती है।
500 से अधिक फूलों की प्रजाति
इस बाग में 500 से अधिक फूलों की प्रजातियां पाई जाती हैं। जिन लोगों को फूल बेहद पसंद होते हैं ऐसे में उनको यहां जरूर जाना चाहिए। इन सुंदर व रंगीन फूलों को देखकर किसी का भी खुश हो उठता है। नवम्बर से मई माह के मध्य घाटी सामान्यतः हिमाच्छादित रहती है। जुलाई एवं अगस्त माह के दौरान एल्पाइन जड़ी की छाल की पंखुडियों में रंग छिपे रहते हैं। यहाँ सामान्यतः पाये जाने वाले फूलों के पौधों में एनीमोन, जर्मेनियम, मार्श, गेंदा, प्रिभुला, पोटेन्टिला, जिउम, तारक, लिलियम, हिमालयी नीला पोस्त, बछनाग, डेलफिनियम, रानुनकुलस, कोरिडालिस, इन्डुला, सौसुरिया, कम्पानुला, पेडिक्युलरिस, मोरिना, इम्पेटिनस, बिस्टोरटा, लिगुलारिया, अनाफलिस, सैक्सिफागा, लोबिलिया, थर्मोपसिस, ट्रौलियस, एक्युलेगिया, कोडोनोपसिस, डैक्टाइलोरहिज्म, साइप्रिपेडियम, स्ट्राबेरी एवं रोडोडियोड्रान इत्यादि प्रमुख हैं।
रामायण में भी इस जगह का वर्णन
इस खूबसूरत घाटी का वर्णन धार्मिक ग्रंथ रामायण में भी किया गया है। मान्यताओं के मुताबिक, यह वहीं फूलों की घाटी है जहां से संकटमोटन हनुमान जी ने श्रीराम के अनुज लक्ष्मण जी की जान बचाने के लिए संजीवनी बूटी लेने गए थे।
परियों का घर
वहां के लोकल लोगों का मानना हैं कि यहां पर परियां निवास करती हैं। वहां के स्थानीय लोगों के द्वारा ऐसा मानने से काफी समय तक लोग यहां जाने से डरते या कतराते थे। बता दें, इस घाटी में पाई जाने वाले फूलों से दवाइयां भी तैयार की जाती है।
कैसे हुई खोज?
सन् 1931 में फ्रैंक स्मिथ और उनके साथी होल्डसवर्थ ने इस सुंदर फूलों की घाटी को खोजा था। बात अगर फ्रैंक की करें तो वह एक प्रसिद्ध पर्वतारोही थे। उनके द्वारा इस जगह की खोज करने से यह घाटी एक मशहूर पर्यटन स्थल के रूप माना जाने लगा। ऐसे में हर साल भारी मात्रा में पर्यटक इस खूबसूरत फूलों की घाटी को देखने आते हैं।इस घाटी का पता सबसे पहले ब्रिटिश पर्वतारोही फ्रैंक एस स्मिथ और उनके साथी आर एल होल्डसवर्थ ने लगाया था, जो संंयोग से 1931 में अपने कामेट पर्वत के अभियान से लौट रहे थे। इसकी बेइंतहा खूबसूरती से प्रभावित होकर स्मिथ 1937 में इस घाटी में वापस आये और, 1938 में “वैली ऑफ फ्लॉवर्स” नाम से एक किताब प्रकाशित करवायी। हिमाच्छादित पर्वतों से घिरा हुआ और फूलों की 500 से अधिक प्रजातियों से सजा हुआ यह क्षेत्र बागवानी विशेषज्ञों या फूल प्रेमियों के लिए एक विश्व प्रसिद्ध स्थल बन गया।