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ALLMS में राजकुमारी अमृता कौर की वज़ह से मिलता है बढ़िया इलाज़

राजकुमारी अमृत कौर (अंग्रेज़ी: Rajkumari Amrit Kaur; जन्म- 2 फ़रवरी, 1889, उत्तर प्रदेश; मृत्यु- 2 अक्टूबर, 1964) भारत की एक प्रख्यात गांधीवादी, स्वतंत्रता सेनानी और एक सामाजिक कार्यकर्ता थीं। वह देश की स्वतंत्रता के बाद भारतीय मंत्रिमण्डल में दस साल तक स्वास्थ्य मंत्री रहीं। देश की पहली महिला कैबिनेट मंत्री होने का सम्मान उन्हें प्राप्त है। राजकुमारी अमृत कौर कपूरथला के शाही परिवार से ताल्लुक रखती थीं। राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी के प्रभाव में आने के बाद ही उन्होंने भौतिक जीवन की सभी सुख-सुविधाओं को छोड़ दिया और तपस्वी का जीवन अपना लिया। वे सन 1957 से 1964 में अपने निधन तक राज्य सभा की सदस्य भी रही थीं।


जन्म तथा परिवार

राजकुमारी अमृत कौर के पिता राजा हरनाम सिंह कपूरथला, पंजाब के राजा थे और माता रानी हरनाम सिंह थीं। राजा हरनाम सिंह की आठ संतानें थीं, जिनमें राजकुमारी अमृत कौर अपने सात भाईयों में अकेली बहिन थीं। अमृत कौर के पिता ने ईसाई धर्म स्वीकार कर लिया था। सरकार ने उन्हें अवध की रियासतों का मैनेजर बनाकर अवध भेजा था।

शिक्षा

राजकुमारी अमृत कौर की आरम्भ से लेकर आगे तक की शिक्षा इंग्लैण्ड में हुई थी। उनके पिता के गोपाल कृष्ण गोखले से बहुत ही अच्छे मैत्रीपूर्ण सम्बन्ध थे। इस परिचय का प्रभाव राजकुमारी अमृत कौर पर भी पड़ा था। वे देश के सामाजिक और राजनीतिक जीवन में सक्रिय रूप से भाग लेने लगी थीं।

महात्मा गांधी की प्रिय थी अमृता कौर।


पिता हरनाम सिंह से मिलने उस समय के बड़े लीडर आते रहते थे. जैसे गोपालकृष्ण गोखले इनके पिता के करीबी थे. उनके ज़रिए ही राजकुमारी अमृत कौर को महात्मा गांधी के बारे में जानकारी मिली. उन्होंने माहात्मा गांधी को ख़त लिखने शुरू किए. लेकिन इनके माता-पिता नहीं चाहते थे कि वो आज़ादी की लड़ाई में भाग लें. लेकिन इस वजह ने राजकुमारी अमृत कौर को रोका नहीं. 1927 में मार्गरेट कजिन्स के साथ मिलकर उन्होंने ऑल इंडिया विमेंस कांफ्रेंस की शुरुआत की. बाद में इसकी प्रेसिडेंट भी बनीं इनकी लगन देखकर गांधी जी ने राष्ट्रीय आन्दोलन से जुड़ने के लिए इन्हें खत लिखा. उस खत में महात्मा गांधी ने लिखा,

“मैं एक ऐसी महिला की तलाश में हूं जिसे अपने ध्येय का भान हो. क्या तुम वो महिला हो, क्या तुम वो बन सकती हो?”

राजकुमारी अमृत कौर राष्ट्रीय आन्दोलन से जुड़ गईं. दांडी मार्च और भारत छोड़ो आंदोलन में भाग लेने की वजह से जेल भी गईं. महात्मा गांधी की सेक्रेटरी के तौर पर इन्होंने करीब 17 सालों तक काम किया. गांधी आश्रम में ही रहा करती थीं।

राजकुमारी ने की थी ALLMS की शुरुआत

जब देश आज़ाद हुआ, तब उन्होंने यूनाइटेड प्रोविंस के मंडी से कांग्रेस पार्टी के टिकट पर चुनाव लड़ा. और जीतीं. ये सीट आज हिमाचल प्रदेश में पड़ती है. सिर्फ चुनाव ही नहीं जीतीं, बल्कि आज़ाद भारत की पहली कैबिनेट में हेल्थ मिनिस्टर भी बनीं. लगातार दस सालों तक इस पद पर बनी रहीं. वर्ल्ड हेल्थ असेम्बली की प्रेसिडेंट भी बनीं. इनसे पहले कोई भी महिला इस पद तक नहीं पहुंची थी. यही नहीं. इस पद पर पहुंचने वाली वो एशिया से पहली व्यक्ति थीं. स्वास्थ्य मंत्री बनने के बाद उन्होंने कई संस्थान शुरू किए, जैसे

इंडियन काउंसिल ऑफ चाइल्ड वेलफेयर,
ट्यूबरक्लोसिस एसोसियेशन ऑफ इंडिया,
राजकुमारी अमृत कौर कॉलेज ऑफ नर्सिंग, और
सेन्ट्रल लेप्रोसी एंड रीसर्च इंस्टिट्यूट.

इन सभी के अलावा उन्होंने एक ऐसा संस्थान भी स्थापित करवाया, जो आज देश के सबसे महत्वपूर्ण अस्पतालों में से एक है. ऑल इंडिया इंस्टिट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज। यानी AIIMS. इसके लिए उन्होंने न्यूजीलैंड, जर्मनी, अमेरिका जैसे देशों से फंडिंग का इंतजाम भी किया. शिमला में में अपना पैतृक मकान, मैनरविल, भी उन्होंने AIIMS को दान कर दिया. ताकि वहां की नर्सें यहां आकर छुट्टियां बिता सकें।