‘देहरादून का मर्सिया’ कविता इन दिनो सोशल मीडिया पर छाई हुई है। ये कविता उत्तराखंड के पर्यावरण को होते नुकसान को लेकर लिखी है। खास तौर से देहरादून और मसूरी के प्राकृतिक सौंदर्य को निर्माण और विकास के नाम पर की गई दुर्गति को कविता में उकेरा गया है। इस कविता को उत्तराखंड के पहाड़ी इलाके मसूरी की पहचान रहे अंग्रेज़ी भाषा के मशहूर और सम्मानित लेखक रस्किन बॉंड ने लिखी है। बॉंड का नाम भारत में कहानी और बाल साहित्य के लेखकों में बेहद इज्जत के साथ लिया जाता है वह कभी कभी कविता भी रचते हैं।
देहरादून का मर्सिया
मुझे ताज्जुब है वो हरी घास कहां खो गई!
नये ज़माने के सीमेंट में पूरी दफ़्न हो गई.
मुझे ताज्जुब है वो पंछी कहां उड़ गए!
नये घोंसलों की खोज में कहीं मुड़ गए.
मुझे ताज्जुब है वो पैदल रास्ते कहां चले गए!
बरख़ुरदार! ठीक तुम्हारी कार के तले गए.
मुझे ताज्जुब है वो पुराने साथी कहां हैं!
अस्पताल वाले जानते हों, वो जहां हैं.
मेरी आंखों के सामने इतनी जल्दी ये क्या बदल गया?
लाखों मक्खियां, ये कूड़ा कचरा पल गया.
क्या यही वो मुक़ाम है, जिसका है गुणगान?
गपशप में तुमने किया इसका बड़ा बखान!
लेकिन… जब तक मैं यह सब जान पाया,
यही हो चुका था नसीब का सामान.
इस कविता को अपने अकाउंट से पोस्ट करने के बाद बॉंड ने अपने प्रशंसकों और पाठकों को शुभकामनाएं देकर उन्हें प्रकृति के साथ जुड़े रहने को भी कहा है। बता दें कि उनकी ये कविता सोशल मीडिया पर छाई हुई ह।