विश्व पर्यावरण दिवस पर आज हम बात करते है देवो की भूमी की । जहां हर दिन विनाश की खबरे आम होती जा रही है। प्रकृति कहर बरसा रही है। और इस विनाश के जिम्मेदार आप और हम है। क्या आप जानते है कि देवभूमी में सीटी बजाने चिल्लाने तक की मनाही थी वहीं पहाड़ो पर आज बड़े-बड़े विस्फोट हो रहे है।आज उसी संवेदनशील हिमालय क्षेत्र में न केवल हेलीकॉप्टर गड़गड़ा रहे हैं, बल्कि बड़ी बांध परियोजनाओं के निर्माण के दौरान जो शोर होता है, उसके परिणाम हम सबके सामने हैं। हिमालयी क्षेत्रों में सड़क निर्माण की अनुमति दी जाती है तो वहां डायनामाइट से विस्फोट कर सड़कें बनाई जाती हैं। सीधे-सीधे इसका असर पर्यावरण पर पड़ता है।
बता दें कि 100 किमी से अधिक दूरी की सड़क बनाने के लिए पर्यावरण विभाग की ओर से एनवायर्नमेंटल एस्सेमेंट इम्पेक्ट (ईएआई) के कठोर नियम हैं। इन्हें एक ही लंबी सड़क न दिखाकर छोटी छोटी सड़क परियोजनाओं में बांट दिया जाता है। सड़कों की चौड़ाई में भी राज्य सरकार अपने ही द्वारा निर्धारित मानदंड को दरकिनार करने में भी गुरेज नहीं करती हैं। एक किमी सड़क निर्माण में 20 से 60 क्यूबिक मीटर मलबा (धूल-मिट्टी) निकलता है। चारधाम सड़क परियोजनाओं सहित इतनी लंबी सड़क निर्माण में कितना मलबा एकत्र हुआ होगा, इसका सिर्फ अनुमान ही लगाया जा सकता है। पहाड़ी इलाकों में मलबा सीधे नदी क्षेत्र में डाल दिया जाता है, जिससे नदी में गाद बढ़ने से बाढ़ की संभावनाएं बढ़ जाती हैं।
गौरतलब है कि पहाड़ों में प्रकृति लगातार प्राकृतिक आपदाओं के जरिए कहर बरपा रही है। राज्य के पहाड़ी जिलों रुद्रप्रयाग, उत्तरकाशी, जोशीमठ के बाद अब चमोली जिले के घाट विकासखंड के बाजार में बीते माह बाजार में अतिवृष्टि की घटना से जहां दुकानें क्षतिग्रस्त हुईं, वहीं दूसरी ओर चिपको आंदोलन की प्रणेता गौरा देवी के गांव रैणी के लोग ऋषि गंगा का जलस्तर बढ़ने के कारण पलायन कर गुफाओं में आश्रय लेने को मजबूर हुए।