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गढ़वाल में लॉकडाउन के बीच एक युवक ने शुरू किया मशरूम का उत्पादन: 150 युवाओं ने मशरूम उत्पादन शुरु किया

देशभर में मशरूम उत्पादन का प्रशिक्षण लेकर वापस गांव पहुंच भिकियासैंण के त्रिलोक गांव में ही मशरूम का उत्पादन कर आजीविका चला रहे हैं। इस दौरान वह अन्य ग्रामीणों को भी मशरूम के उत्पादन के लिए प्रेरित कर रहें हैं। लॉकडाउन के बीच उनसे प्रेरित होकर करीब 150 युवाओं ने मशरूम उत्पादन शुरू भी कर दिया।

भिकियासैंण के ग्राम बेल्टा सैनार निवासी 32 वर्षीय त्रिलोक सिंह बिष्ट पुत्र लक्ष्मण सिंह बिष्ट ने 2012 में सिविल इंजीनियरिंग से बीटेक की डिग्री प्राप्त की थी। बीटेक करने के बाद वह दिल्ली में ही किसी कंपनी में कार्यरत थे। इस दौरान उन्होंने मशरूम प्रशिक्षण लेना शुरू किया। 2018 में वह गांव आए और मशरूम का उत्पादन शुरू किया। शुरू में परेशानियां आईं लेकिन धीरे-धीरे मशरूम का उत्पादन अच्छा होने लगा। शहर में 30 से 40 हजार की नौकरी छोड़कर लौटे त्रिलोक ने बताया कि मशरूम के अच्छे उत्पादन से बहुत लाभ मिलता है। उत्पादन के लिए वह फेसबुक, यू ट्यूब और अन्य सोशल मीडिया के माध्यम से लोगों को जागरूक कर रहे हैं। लॉकडाउन के दौरान उनसे प्रेरित होकर करीब 150 लोगों ने मशरूम उत्पादन को चुना है।

60 से 70 हजार रुपये का कर रहे उत्पादन


अल्मोड़ा। नौकरी छोड़ वापस गांव पहुंच मशरूम की खेती करने वाले त्रिलोक ने बताया कि खेती के लिए शुरू में लगभग पांच हजार रुपये का खर्च आता है। उन्होंने भी पांच हजार खर्च कर कार्य शुरू किया था, जिसके बाद धीरे-धीरे अच्छी उपज होने लगी। अब वह प्रतिमाह 60 से 70 हजार रुपये का उत्पादन कर लेते हैं। पांच हजार रुपये तक की राशि खर्च करने के बाद ही यदि बहुत कम भी उत्पादन हो तो भी कृषकों को कम से कम सात से 12 हजार रुपये तक की आय होनी शुरू हो जाती है। संवाद
120 लोगों को मशरूम उत्पादन का प्रशिक्षण दे चुके हैं कोरंगा
बागेश्वर। दुलम निवासी भगवत सिंह कोरंगा दो माह से मशरूम उत्पादन का प्रशिक्षण दे रहे हैं। अभी तक वह 15 प्रवासियों समेत 120 लोगों को मशरूम उत्पादन का निशुल्क प्रशिक्षण दे चुके हैं। उनके प्रशिक्षण के बाद करीब 15 लोगों ने मशरूम उत्पादन भी शुरू कर दिया है। वर्तमान में कोरंगा राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन (एनआरएलएम) के माध्यम से फरसाली और भनार में विभिन्न समूहों के 100 लोगों को प्रशिक्षण दे रहे हैं। कोरंगा का कहना है कि वह ढिंगरी और बटन प्रजाति के मशरूम का उत्पादन करते हैं। इस वर्ष वह दो क्विंटल बटन मशरूम और एक क्विंटल ढिंगरी मशरूम का उत्पादन कर चुके हैं। जिसकी खपत जिले में ही हो जाती है। बड़े शहरों से डिमांड आने के बावजूद मशरूम वहां तक नहीं पहुंच पाता है।
पिछले कई वर्षों से मशरूम की खेती का प्रशिक्षण दे रहे कृषि विज्ञान केंद्र के प्रभारी व मशरूम विशेषज्ञ डॉ. आईके कुशवाहा बताते हैं, “तीन तरह के मशरूम का उत्पादन होता है, अभी सितम्बर महीने से 15 नवंबर तक ढ़िगरी मशरूम का उत्पादन कर सकते हैं, इसके बाद आप बटन मशरूम का उत्पादन कर सकते हैं, फरवरी-मार्च तक ये फसल चलती है, इसके बाद मिल्की मशरूम का उत्पादन कर सकते हैं जो जून जुलाई तक चलता है। इस तरह आप साल भर मशरूम का उत्पादन कर सकते हैं।”

ऑयस्टर मशरुम
डॉ. आईके कुशवाहा बताते हैं, “ऑयस्टर मशरूम की खेती बड़ी आसान और सस्ती है। इसमें दूसरे मशरूम की तुलना में औषधीय गुण भी अधिक होते हैं। दिल्ली, कलकत्ता, मुम्बई एवं चेन्नई जैसे महानगरों में इसकी बड़ी माँग है। इसीलिये विगत तीन वर्षों में इसके उत्पादन में 10 गुना वृद्धि हुई है। तमिलनाडु और उड़ीसा में तो यह गाँव-गाँव में बिकता है। कर्नाटक राज्य में भी इसकी खपत काफी है। महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, पश्चिम बंगाल, केरल, राजस्थान और गुजरात जैसे राज्यों में भी ओईस्टर मशरूम की कृषि लोकप्रिय हो रही है।

बागेश्वर में बीज इकाई केंद्र की आवश्यकता

बागेश्वर। भगवत सिंह कोरंगा ने बताया कि मशरूम के बीज की डिमांड काफी ज्यादा आ रही है लेकिन डिमांड के मुताबिक मशरूम का कंपोस्ट उपलब्ध नहीं हो पा रहा है। प्रशिक्षण के बाद मशरूम के बीज की डिमांड दोगुनी हो गई है। वर्तमान में करीब 60 किलों से अधिक मशरूम के बीज की डिमांड आ रही है। बीज की कमी के चलते कई काश्तकार मशरूम की खेती नहीं कर पाते है। बताया कि जिले में बीज इकाई केंद्र खुलने से इस समस्या का समाधान हो सकता है। बताते हैं कि दो दिन बाद मशरूम उत्पादन केंद्र से उन्हें तीस किलो मशरूम का कंपोस्ट बीज मिलने वाला है।