कुदरत ने उत्तराखंड को अपनी अनमोल नेमतों से नवाजा है। यहां के पर्वत-जंगल औषधीय गुणों वाली जड़ी-बूटियों का भंडार हैं।हमारा उत्तराखंड राज्य जिसे हम देवभूमि भी कहते हैं जो देवों की भूमि है वहां हर बीमारी का इलाज मिल जाता है वहां ऐसी कई जड़ी बूटियां पाई जाती हैं जिससे बड़ी बड़ी बीमारियों को जड़ से मिटाया जा सकता है ऐसे ही उत्तराखंड में कई ऐसी जड़ी बूटियां हैं जिसके माध्यम से हम बड़ी से बड़ी बीमारी को जड़ से खत्म कर सकते हैं।
पहाड़ के बड़े-बुजुर्ग इन वनस्पतियों के औषधीय गुणों के बारे में जानते थे, यही वजह है कि पुराने जमाने में पहाड़ के लोग लंबी उम्र जीते थे, उन्हें वक्त-बेवक्त अस्पताल का मुंह नहीं देखना पड़ता था। लेकिन बुजुर्गों का सहेजा गया ये ज्ञान धीरे-धीरे लुप्त होता जा रहा है। इसके संरक्षण की जरूरत महसूस की जा रही है। आज हम आपको पहाड़ के एक ऐसे ही खास फल के बारे में बताएंगे, जो औषधीय गुणों का भंडार है। कुमाऊं के लोग इसके गुणों के बारे में अच्छी तरह जानते हैं, लेकिन अब भी ज्यादातर लोग इसकी मेडिशनल वेल्यू से अनजान ही हैं। जिस फल की हम बात कर रहें है उसे च्यूरा के नाम से जाना जाता है।
मुख्यमंत्री ने वीडियो किया था साझा
हाल ही में इस से जुड़ा एक वीडियो मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत के मीडिया सलाहकार रमेश भट्ट ने अपने फेसबुक पेज पर साझा किया। रमेश भट्ट पहाड़ के हित से जुड़े मुद्दों पर अक्सर बात करते रहते हैं। सोशल मीडिया पर कई नई जानकारियां शेयर करते हैं। इसी कड़ी में उन्होंने च्यूरा फल के इस्तेमाल और इसकी मेडिशनल वैल्यू से जुड़ा एक वीडियो अपने फेसबुक पेज पर साझा किया है। पहले ये वीडियो देख लीजिए।
एक फल के गुण अनेक
च्यूरा कुमाऊँ की पहाडि़यों में पाया जाने वाला एक ऐसा पेड़ है, जिसका फल खाने के काम आता है और उसके बीज से इतनी अधिक मात्रा में वनस्पति घी मिलता है कि प्रायः इसे घी का पेड़ तक कह दिया जाता है। इसके फूलों से शहद एवं गुड़ प्राप्त किया जाता है और पत्तियाँ जानवरों के चारे के काम आती हैं। बीजों की खली व पेड़ के छिक्कल से विभिन्न प्रकार के कीटनाशक एवं औषधि प्राप्त होती है।
काली, सरयू, रामगंगा एवं गोरी नदियों की घाटियों में तथा काली नदी के दूसरी ओर नेपाल में भी यह प्राकृतिक रूप से पाया जाता है। इसका पेड़ बड़ा तथा पत्ते बड़े व चमकदार गहरे हरे रंग के होते हैं। फूल सफेद रंग के गुच्छों में होते हैं, जिनमें हल्की सी गंध आती है। इनके खिलने का समय अक्टूबर से फरवरी माह तक होता है।
च्यूरा का पका हुआ फल पीले रंग का होता है। खुशबूदार फल खाने में स्वादिष्ट व मीठा होता है। च्यूरा के पेड़ों के आसपास जाते ही वातावरण में फैली खुशबू से मालूम हो जाता है कि च्यूरा पकने लगा है। फल खाने के बाद बीजों को इकट्ठा कर लिया जाता है। एक पेड़ से औसतन एक से डेढ़ कुन्तल तक बीज मिल जाते हैं। स्थानीय लोगों के लिए यह बीज काफी महत्वपूर्ण होता है। यही कारण है कि इसका फल कभी भी बाजार में बिकने के लिए नहीं आता