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नैनीताल अनसुने 10 ऐसे तथ्य जो आपने सुनी नहीं होंगे

प्राकृतिक सुंदरता एवं संसाधनों से भरपूर जनपद नैनीताल हिमालय पर्वत श्रंखला में एक चमकदार गहने की तरह है । कई सारी खूबसूरत झीलों से सुसज्जित यह जिला भारत में ‘झीलों के जिले’ के रूप में मशहूर है चारों ओर से पहाडियों से घिरी हुई ‘नैनी झील’ इन झीलों में सबसे प्रमुख झील है। नैनीताल अपने खूबसूरत परिदृश्यों और शांत परिवेश के कारण पर्यटकों के स्वर्ग के रूप में जाना जाता है।


नैनीताल को झीलों का आशीर्वाद प्राप्त है नैनीताल में हर पल आपको एक खूबसूरत जिम देखने को मिल जाएगी वहां का हसीन मौसम आप का मन जीत लेगा नैनीताल को जीरो कलकत्ता भी कहा जाता है नैनीताल हिमालयन बेल्ट में स्थित है यह कुमाऊ की पहाड़ियों के मध्य में स्थित हैनैनीताल को श्री स्कन्द पुराण के मानस खंड में ‘तीन संतों की झील’ या ‘त्रि-ऋषि-सरोवर’ के रूप में उल्लेखित किया गया है। तीन संत जिनके नाम अत्री, पुलस्त्य और पुलाह थे, अपनी प्यास मिटाने के लिए, नैनीताल में रुके थे पर उन्हें कहीं भी पानी नहीं मिला तब उन्होंने एक गड्ढा खोदा और मानसरोवर झील से लाए गए जल से इस गड्ढे को भर दिया। तब से यह ‘नैनीताल’ नमक प्रसिद्ध झील अस्तित्व में आई। एक अन्य कथा में कहा गया है कि हिंदू देवी सती (भगवान शिव की पत्नी) की बाईं आंख इस जगह पर गिर गई थी जिससे इस आँख के आकार की नैनी झील का निर्माण हुआ।


किराया: दिल्ली से काठगोदाम का रेल किराया प्रति व्यक्ति लगभग 300 रुपए (दोनों तरफ का) आएगा। नैनीताल यहां से सिर्फ 35 किलोमीटर की दूरी पर है। बस से यहां तक का किराया प्रति व्यक्ति आना-जाना लगभग लगभग 50 रुपए। दिल्ली से रानीखेत तक का किराया पति-पत्नी और 8 साल तक के दो बच्चों के साथ लगभग 800 रुपए आएगा।होटल व खाना-पीना: यहां भी कुमाऊं मंडल के एक से बढ़ कर एक होटल हैं। होटल का किराया प्रति रात 1100 से 2450 रुपए के बीच है। किराए के मद में प्रति रात औसत 1500 रुपए खर्च करने पड़ेंगे। खाने-पीने के लिए पूरे परिवार के लिए एक हजार रुपए मान कर चलें।

शास्त्रों के अनुसार दक्ष प्रजापति की पुत्री देवी सती का विवाह महादेव शिव से हुआ था। लेकिन दक्ष प्रजापति को महादेव शिव दामाद के रूप में पसंद नहीं थे, इसलिए जब दक्ष प्रजापति ने यज्ञ कराया तो सारे देवताओं को बुलाया परन्तु महादेव शिव और देवी सती को नहीं बुलाया। महादेव शिव के मना करने की बावजूद भी देवी सती अपने पिता के घर चली गयीं, जहाँ पे दक्ष प्रजापति ने महादेव शिव का बहुत अपमान किया । देवी सती अपने पति का यह अपमान बर्दाश्त नही कर पायीं और दक्ष प्रजपति के यज्ञ को असफल बनाने के लिए हवन कुण्ड में कूद पड़ीं। देवी सती के आत्म बलिदान की बात सुनकर महादेव शिव के क्रोध का ठिकाना नही रहा, उन्होंने अपने गणों के साथ पहुंच कर दक्ष प्रजापति के यज्ञ को तहश नहस कर दिया और देवी सती के जले हुए शरीर को उठा कर महादेव शिव ब्रह्माण्ड भ्रमण करने लगे । जहाँ जहाँ पे भी देवी सती के शरीर के अंग गिरे वहाँ-वहाँ पर शक्ति पीठ स्थापित हो गए। आज जहा नैनी झील है वहा देवी सती की बायीं आँख गिरी थी और उनके आंसुओं के धार से यहाँ झील का निर्माण हुआ ऐसा मन जाता है।हर एक हिल सिटी यह खासियत है की वहां एक ऐरी रोड जरूर होती है, जिसका नाम मॉल रोड होता है। लेकिन नैनीताल में एक नहीं बल्कि दो मॉल रोड हैं – अपर मॉल और लोअर मॉल, जिनका निर्माण ब्रिटिश काल में हुआ था । ब्रिटिश राज में अपर मॉल रोड खास तौर पे इंग्लिश लोगो के लिए थी और लोअर माल रोड आम भारतियों के लिए । अपर मॉल रोड पे अगर कोई भारतीय कदम भी रख लेता तो उसे सजा दी जाती थी।

तल्लीताल और मल्लीताल


तल्लीताल और मल्लीताल नाम सुन कर चौंके होंगे । वास्तव में लोकल कुमाँऊनी बोली में तल्ली का मतलब है नीचे और मल्ली का मतलब है ऊपर, इसलिए झील के नीचे वाले एरिया का नाम तल्लीताल पड़ गया और ऊपर वाले एरिया का का नाम मल्लीताल ।

फ्लैट्स ग्राउंड


का निर्माणआज जहा पर फ्लैट्स ग्राउंड है पहले वहा तक झील हुआ करती थी। सन 1880 में शहर के उत्तरी पहाड़ी में एक जोरदार भूस्खलन हुआ और पहाड़ी से बहुत सारा मलवा खिसक के निचे आ गया, जिसने झील के काफी हिस्से को घेर लिया और इस भूस्खलन में देवी मंदिर भी क्षतिग्रस्त हो गया था। प्राचीन काल से ही नैना देवी मन्दिर झील के किनारे ही रहा है इसलिए मंदिर को कुछ मीटर्स आगे की तरफ झील के ही किनारे स्थापित कर दिया गया और भूस्खलन से आये मलवे से फ्लैट्स ग्राउंड का निर्माण हुआ।

संयुक्त राज्य की राजधानी


बहुत कल लोग ये बात जानते हैं कि ब्रिटिश काल में नैनीताल संयुक्त प्रान्त की ग्रीष्मकालीन राजधानी हुआ करती थी। उत्तराखंड का राजभवन जो की नैनीताल में स्थित है, वो संयुक्त प्रान्त के गवर्नर के लिए बनाया गया था। लखनऊ शहर की भीषण गर्मी की वजह से ब्रिटिशर्स अपना ज्यादातर वक्त नैनीताल में ही गुजरा करते थे।

आधुनिक नैनीताल शहर का निर्माण


वैसे तो नैनीताल का अस्तित्व पौराणिक काल से है पर आधुनिक नैनीताल नगर बसने का श्रेय जाता है एक अंग्रेज व्यापारी पी बैरन को। पी बैरन चीनी व्यापारी थे और पहाड़ों की वादियों में घूमने फिरने का बहुत शौख रखते थे। एक बार वह हिमालय भ्रमण के लिए निकले हुए थे तथा खैरना नामक स्थान पे उन्होने विश्राम किया, जहाँ उसकी मुलाकात एक स्थानीय युवक से हुयी। युवक ने बताया की सामने वाली पहाड़ी को “शेर का टांडा” कहा जाता है और जिसके दूसरी तरफ एक बेहद सुन्दर झील मौजूद है। प्राकृतिक दृश्यों को देखने के शौक़ीन बैरन स्थानीय लोगो की मदद से नैनीताल पहुचें और स्थान की सुंदरता देख कर मंत्रमुग्ध हो गए और उन्होंने उसी दिन तय कर लिया कि अब वो नैनीताल की इन सुन्दर वादियों में नया शहर बसाएंगे।

प्राइवेट बारिश


सुनने में ये बात थोड़ी अजीब जरूर लगी होगी, लेकिन ये बात काफी हद तक सच है। झील की वजह से नैनीताल का मौसम हमेशा बदलता रहता है । आप इस बात का अंदाजा नहीं लगा सकते की 15 मिनट बाद मौसम कैसा होगा, अभी धूप है तो बस कुछ समय बाद ही झील से बदल उठ कर बरसना शुरू कर देते हैं । मल्लीताल में तेज बारिश हो रही है तो स्नो व्यू पे चटक धूप खिली होगी, कुमाऊँ विश्वविद्यालय से आप ये सोच के आप निकलते हैं कि आज मौसम साफ़ है पर तल्लीताल तक पहुचने तक बारिश आपको भिगो देती है, ऐसा ही कुछ खास मौसम है नैनीताल का ।

नैनीताल सहित पूरा उत्तराखंड सांप्रदायिक सौहार्द की एक मिशाल है, नैनीताल प्राचीन भारतीय परम्पराओं का वो आइना है जो हमें दिखता है कि मध्य कालीन युग से पहले पुरे भारत में किस प्रकार विभिन्न प्रकार की पूजा पद्धतियों को अपनाया जाता रहा है। नैनीताल और उत्तराखंड के बाकि पहाड़ी हिस्सों में कभी भी मुगल शासन नहीं रहा, यही वो वजह है जिससे कि मध्ययुग में आई विदेशी विचारधारा कि ” केवल हमारा धरम या हमारी पूजा पद्धति ही सही है और बाकी सारे धरम या पूजा पद्धति गलत ” इस नफ़रत भरी अरबी विचारधारा का नैनीताल के मूल निवासियों ने कभी सामना ही नहीं किया। इसलिए आजादी के पहले भी और बाद में भी जब विभिन्न मतों के लोग नैनीताल में बसने के लिए पहुंचे तो स्थानीय निवासियों ने बाहें खोल कर स्वागत किया । आज नैनीताल देश का एक ऐसा शहर है जहा १ किलोमीटर के परिधि में ही मंदिर, मस्जिद , गुरुद्वारा और चर्च स्थित हैं। सभी धरमो के त्यौहार उनकी धार्मिक मान्यताओं के अनुरूप मनाये जाते हैं, पर आज तक एक छोटी सी हिंसक झड़प तक की खबर कभी नहीं आई।

एक सपना जो कभी पूरा नहीं हो पाया


शिमला और दार्जिलिंग को रेल मार्ग से जोड़ने के बाद ब्रिटिश राज नैनीताल को भी रेल मार्ग से जोड़ना चाहता था। इसके लिए बाकायदा सर्वे किया गया और यह पाया गया की शिमला और दार्जिलिंग की तुलना में नैनीताल में भूस्खलन की संभावनाएं ज्यादा हैं। इसलिए ब्रिटिश राज ने नैनीताल रेल लाइन का निर्माण करने के लिए विशेष तकनीकि का इस्तेमाल करने का फैसला किया । लेकिन इस योजना को अमल में लाने से पहले ही भारत को ब्रिटिश राज से स्वतंत्रता मिल गयी और काठगोदाम से नैनीताल तक की यात्रा रेलगाड़ी से करने का सपना, एक सपना बनाके ही रह गया।