दुनियाभर में बिखरे गढ़वाल के मानवीय इतिहास को सहेजने के लिए पुराना दरबार ट्रस्ट तैयारियों में जुट गया है। दरअसल, लंदन और फ्रांस के संग्रहालय में गढ़वाल के सांस्कृतिक इतिहास और सभ्यता से संबंधित दस्तावेज संरक्षित हैं। ऐसे में पुराना दरबार ट्रस्ट डिजिटाइजेशन रूप में इनको लाने की कवायद कर रहा है।
गढ़वाल में कुल 52 गढ़ थे। गढ़वाल के पंवार वैसी राजाओं का इतिहास सन 888 ई० में महाराजा कनकपाल से आरम्भ हुआ। तब से सन 1947 तक यहां पर 59 राजाओं ने शासन किया। … में महाराजा अजयपाल ने गढ़वाल के सभी ठाकुरी राजाओं सरदारों के गढों को विजय प्राप्त कर एक राज्य स्थापित किया और उसका नाम गढ़वाल रखा। अंग्रेजों ने गढ़वाल की सहायता की और गोरखा राज से मुक्ति दिलाई। इसके बदले में ईस्ट इण्डिया कम्पनी ने महाराजा सुदर्शन शाह से अत्यधिक धनराशि की मांग की। असमर्थता के कारण राजा मांगी गई धनराशि नहीं दे सका। अत: 30 नवम्बर 1815 को गढ़वाल दो हिस्सों में बट गया।
अंग्रेजों के अधिन आने पर उन्होंने गढ़वाल या गढ़वाल न पुकारकर उच्चारण की सुविधा से इसे गढ़वाल नाम से पुकारा तभी से टिहरी तथा ब्रिटिश गढ़वाल इसी नाम से पुकारे जा रहे हैं। समय के साथ ही देश स्वतन्त्र हुआ। रजवाड़ें समाप्त हुए। अब ब्रिटिश गढ़वाल पौड़ी गढ़वाल के नाम से जाने जाने लगा। वह भारत और ईस्ट इंडिया कंपनी के इतिहास में पौड़ी गढ़वाल के नाम से लिखा जाने लगा।पुराना दरबार ट्रस्ट डिजिटाइजेशन रूप में इतिहास को लाने की कवायत कर रही है।दुनियाभर में बिखरे गढ़वाल के मानवीय इतिहास को सहेजने के लिए पुराना दरबार ट्रस्ट तैयारियों में जुट गया है। दरअसल, लंदन और फ्रांस के संग्रहालय में गढ़वाल के सांस्कृतिक इतिहास और सभ्यता से संबंधित दस्तावेज संरक्षित हैं। ऐसे में पुराना दरबार ट्रस्ट डिजिटाइजेशन रूप में इनको लाने की कवायद कर रहा है।ट्रस्ट ने गढ़वाल के इतिहास की दर्जनों पांडुलिपियां अपने पास सहेजी हुई है।
अब ट्रस्ट लंदन स्थित ब्रिटिश संग्रहालय और फ्रांस के म्यूजियम में संरक्षित गढ़वाल के इतिहास को डिजिटाइजेशन के रूप में भारत लाने की तैयारी कर रहा है। ट्रस्ट के ठाकुर भवानी प्रताप सिंह ने बताया कि लंदन और फ्रांस के म्यूजियम में गढ़वाल का सांस्कृतिक और सभ्यता के इतिहास के दस्तावेज संरक्षित हैं। उनको डिजिटाइजेशन के रूप में मंगाकर अतीत काल के ज्ञान से भावी पीढ़ी को अवगत कराया जा सकता है।