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पहाड़ के अमित ने लोहे से संवारी किस्मत

मिलिए रायकोट कुंवर के अमित कुमार से जिन्होंने लोहे के स्वनिर्मित बर्तनों और पहाड़ी उत्पादों को एक अलग और अनोखी पहचान दी है। अमित कुमार ने लोहे के बर्तनों के साथ स्थानीय स्तर पर पैदा होने वाले उत्पादों को भी एक अलग पहचान दिलाई है। दिल्ली के प्रगति मैदान और देहरादून में राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर लगने वाले कई मेलों में वे स्वनिर्मित लोहे के बर्तनों की प्रदर्शनी के साथ ही उत्तराखंड का मंडुआ, गहत सोयाबीन राजमा आदि उत्पादों का भी स्टॉल लगाते हैं। एक ओर जहां पहाड़ी उत्पाद अपनी पहचान खो रहे हैं, वहां अमित कुमार जैसे लोग अभी भी मौजूद हैं जो इन उत्पादों का प्रचार-प्रसार करने में लगे हुए हैं। वे चाहते तो अन्य लोगों की तरह ही अपना गांव छोड़ कर शहरों में नौकरी कर एक सामान्य व्यक्ति की तरह जीवन जी सकते थे। मगर उन्होंने गांव में रहकर लोहे के बर्तन बनाने की ठानी।

बता दें कि लोहा बनाना उनका पुश्तैनी व्यवसाय है। बचपन में ही उन्होंने ठान लिया था कि वह अपने इस पुश्तैनी धंधे को आगे बढ़ाएंगे और उसको एक अलग पहचान दिलाएंगे जिसके लिए उन्होंने अपनी इंटर के बाद से ही मेहनत करनी शुरू कर दी और आज नतीजा सबके सामने है। अमित कई स्वयं सहायता समूह एवं बेरोजगारों का मार्गदर्शन कर उनको आत्मनिर्भर बनने की ओर प्रेरित कर रहे हैं। अमित बताते हैं कि लोहे के बर्तन बनाना उनका पुश्तैनी काम है और वह इसको आगे बढ़ाना चाहते हैं इसलिए वे लोहे के बर्तन बना कर आत्मनिर्भर बन रहे हैं। इसी के साथ वे पहाड़ी उत्पादों को भी एक अलग नाम देना चाहते हैं इसलिए वे उनका भी प्रचार-प्रसार कर रहे हैं। लोहनगरी के नाम से पहचाने जाने वाले चंपावत के लोहाघाट नगर में हमेशा लोहे के बर्तन बनाने वाले कारीगरों की पहचान रही है। 70 के दशक तक यहां तैयार लोहे के बर्तन और कृषि यंत्र पूरे जिले में पहुंचाए जाते थे लोहाघाट अपने अनोखे लोहे के बर्तनों के लिए बेहद चर्चित हुआ करता था मगर समय बीतने के साथ साथी सब कुछ धुंधला सा होता चला गया और कारीगरों की संख्या में भी तेजी से गिरावट होती चली गई समय बीतने के साथ यह कारीगरी विलुप्त सी होती चली गई।

अमित का कहना है कि अब चंपावत के लोहाघाट में ग्रामीण विकास विभाग लोहे के कारीगरों के लिए महान दिन लेकर लौटा है। कार्यालय ने लोहाघाट में गैस गोदाम के पास एक विकास समुदाय की स्थापना करके लोहे के बर्तनों का निर्माण शुरू किया है। वर्तमान में सभी की जरूरत है 10 से 20 मिनट के लिए एक लोहे के गोले को स्थापित करना है। अमित ने कहा कि पहले इसे लोहे के बर्तनों को प्राप्त करने के लिए कुछ निवेश और काम की आवश्यकता थी और इसे आकार देने में 4 से 5 घंटे लगते थे। इन फ़ोकस में अनगिनत लोहे के बर्तन बनाए जा रहे हैं और उन्हें उचित प्रस्तुति के बावजूद ऑनलाइन पेश किया जा रहा है। लोहे के बर्तन बनाने और उन्हें डिस्प्ले में रखने का काम करने वाले अमित कुमार का कहना है कि लोहाघाट में काम करने वाले विकास समुदायों ने अतिरिक्त रूप से काम करना शुरू कर दिया है और अब विकास के वासियों के पास लोहे के बर्तन हैं और कृषि व्यवसाय में बनाए गए छोटे बागवानी कार्य हैं। कार्यालय स्थानों में खरीदने के लिए उपलब्ध होगा। इसके साथ ही चंपावत की सहायक परियोजना अधिकारी विम्मी जोशी ने कहा कि लोहाघाट में लोहे के बर्तनों के निर्माण पर वर्तमान में फिर से जोर दिया जा रहा है। बीच में 22 लाख रुपये की थोड़ी बड़ी वेट मशीन शुरू की गई है। इन फ़ोकस को स्थापित करने का प्राथमिक लक्ष्य शिल्पकारों को प्रेस करने के लिए व्यवसाय के लिए तरीके देना है।