महिला सशक्तिकरण की बातें तो आपने खूब सुनी होंगी, पर अगर आपको इसकी जीती जागती मिसाल देखनी है तो देहरादून चले आईए। यहां रहतीं हैं 25 साल की गुलिस्तां अंसारी, आम सी दिखने वाली ये लड़की जो काम करती है, वो करना आसान नहीं है। इसके लिए इच्छाशक्ति तो चाहिए ही, साथ ही समाज के तानों का मुंहतोड़ जवाब देने की हिम्मत भी। गुलिस्तां देहरादून की पहली महिला ई-रिक्शा चालक हैं। आमतौर पर मुस्लिम लड़कियों को बुर्कानशीं माना जाता है। ज्यादातर लड़कियां घर की चारदीवारी को ही अपनी दुनिया मान लेती हैं, पर गुलिस्तां इस छवि को तोड़ रही हैं। वो सवारियों को इंदर रोड नई बस्ती से तहसील चौक तक लाती हैं। कहने को गुलिस्तां केवल पांचवीं तक पढ़ी हैं, पर उनमें जो गजब की हिम्मत है वो विरले ही देखने को मिलती है। ऐसा क्षेत्र जहां सिर्फ पुरुषों का दबदबा हो, वहां ई-रिक्शा चलाना आसान काम नहीं है।
गुलिस्तां की पांच बड़ी बहनों की शादी हो चुकी है। अब परिवार में सिर्फ वो और उनकी मां है। गुलिस्तां को मेहनत का पहला फलसफा मां ने ही सिखाया। गुलिस्तां के पिता की कई साल पहले मौत हो गई थी। बाद में मां मजदूरी करने लगीं और बेटियों को पाल-पोसकर बढ़ा किया। पांच बहनों की शादी भी हो गई। अब बूढ़ी मां की देखभाल करने का जिम्मा गुलिस्तां पर आ गया। गुलिस्तां ने बहुत सोचा और फिर बैंक से लोन लेकर ई-रिक्शा खऱीदा और निकल पड़ीं सफलता की राह पर। वो ई-रिक्शा चलाकर हर दिन पांच सौ रुपये तक कमा लेती हैं। इसमें से हर महीने ढाई हजार रुपये बचाकर बैंक की किस्त भी भरती हैं। महिलाएं गुलिस्तां के ई-रिक्शा से सफर करना पसंद करती हैं। दूसरे लोगों ने भी उन्हें सहयोग किया।
यूं तो दून में पहले भी 4 महिलाओं के नाम पर कर्मर्शियल वाहन चालक का लाइसेंस जारी हो चुका है। पर अपना वाहन चलाने वाली गुलिस्तां देहरादून की पहली महिला चालक हैं।