उत्तराखंड में ‘बेटी बचाओ’ अपील का अच्छा असर दिखने लगा है। सरकार की कोशिशों और बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ अभियान की बदौलत उत्तराखंड में लिंगानुपात में तेजी से सुधार हुआ है। यही नहीं उत्तराखंड के खाते में एक शानदार उपलब्धि भी आई है। अपना प्रदेश लिंगानुपात के मामले में देश के पहले टॉप टेन राज्यों में शामिल हो गया है। केंद्र ने उत्तराखंड को लिंगानुपात में नौवें स्थान पर रखा है। बात करें राष्ट्रीय स्तर के टॉप 30 जिलों की तो इनमें भी उत्तराखंड के पांच जिले शामिल हैं। टॉप 30 जिलों में अपना बागेश्वर छठे स्थान पर है। जबकि अल्मोड़ा को 13, चंपावत को 22, देहरादून को 24 और उत्तरकाशी को 25वां स्थान मिला है। बेटियां हैं तो कल है। वो जिसके आंगन में जाएंगी उसमें खुशबू ही फैलाएंगी। प्रदेश के लोग इस बात को समझने लगे हैं। बेटियों को लेकर लोगों की सोच में अंतर आ रहा है। सोच में आए बदलाव के चलते बेटियों को सुरक्षित माहौल मिला है। केंद्र की तरफ से हाल में जारी लिंगानुपात के आंकड़ों की सूची भी इस बात की पुष्टि कर रही है। इस लिस्ट में पहले नंबर पर आंध्र प्रदेश है। जबकि उत्तराखंड 1000 बालकों में 949 बालिकाओं के लिंगानुपात के साथ नौवें स्थान पर है। पिछले साल ये आंकड़ा 938 था। बेटियों को बचाने के लिए प्रदेशभर में जो अभियान चलाए गए, उनका पॉजिटिव असर दिख रहा है।
लड़कियों को बचाने और लिंगानुपात में सुधार के लिए उनकी स्कूली शिक्षा का आग्रह करने के लिए प्रत्येक क्षेत्र में माइंडफुलनेस रैलियां आयोजित की गईं। छोटी लड़कियों को योजनाओं का ब्रांड राजनयिक बनाया गया। युवा महिला श्रम को सशक्त बनाने के लिए छोटी लड़कियों के परिचय पर वैष्णवी इकाई परिवार को दी गई थी। महिला एवं बाल विकास राज्य मंत्री, स्वतंत्र प्रभार रेखा आर्य ने कार्यालय के प्रयासों के सकारात्मक नतीजों पर अतिरिक्त रूप से आनंद का संचार किया। उन्होंने कहा कि इसमें राज्य और उत्तराखंड के लोगों के लिए गर्व की बात है कि सार्वजनिक स्तर पर 10 वें स्थान पर लिंगानुपात है। 24 जनवरी को राष्ट्रीय बालिका दिवस के अवसर पर युवा महिला बाल लिंग अनुपात में शानदार काम करने वाले स्थानीय लोगों का सम्मान किया जाएगा। वर्तमान में हमें इस लक्ष्य के साथ और प्रयास करने चाहिए कि भविष्य में उत्तराखंड में जगह बेहतर हो।