वो ऐसा वीभत्स गैं”ग”रे”प” था, जिसके बारे में कल्प”ना करने से ही रू”ह कांप उठती है। कैसे? क्यों? उस बेटी के साथ ऐसी द”रिं”द”गी” की गई? इतना समझ लीजिए कि वो कोई सा”मा”न्य घ”’ट”ना” नहीं थी। एक मिडिल क्लास घर की लड़की, जो ऑफिस जाती थी और अपनी जिंदगी को संवारने के सपने देखती थी। परिवार की आर्थिक स्थिति बहुत अच्छी नहीं थी, पिता सेक्योरिटी गार्ड थे। इसलिए किरन सोचती थी कि जल्द से जल्द एक घर खरीदना है और अपने पूरे परिवार के साथ हंसी खुशी रहना है। वो घर आते ही जोर से कहती थी..मां मैं आ गई। उस आवाज को याद करते हुए आज भी किरन की मां की आंखें भर आती हैं। 9 फरवरी 2012 का वो का”ला दिन आज भी ज”ख्मों” को कुरेदता है। किरण अपने ऑफिस से घर आ रही थी कि तभी गुड़गांव में एक लाल इंडिका में उसका अ”प”ह”र”ण’ ‘कर लिया गया।
हरियाणा ले जाने के बाद, गरीबों ने उसके साथ तीन दिनों तक मा”र”पी”ट की। उस समय लंबे समय तक स”र”सों” के खेत में बा”ल्टी” को लात मारने के लिए उसे छोड़ दिया। जरूरतमंद व्यक्तियों की कल्पना करें जिन्होंने अपने नाजुक उपांगों में श’रा”ब” का एक कबाड़ रखा है, संक्षारक के साथ आंखों का सेवन किया है, जिनके शरीर को बुदबुदाते हुए पानी से फिर से भर दिया गया है … ऐसे ‘बे”स”हा”’रा’ व्यक्तियों का अनुशासन क्या होना चाहिए? किरण के पिता का कहना है कि वह अपनी छोटी लड़की के लिए इक्विटी का अनु”रो”’ध” करने के लिए शीला दीक्षित के पास गए थे,
हालांकि उन्हें सूचित किया गया था कि इस तरह की घटनाएं जारी हैं। अभी 9 साल होंगे। परिवार को वास्तव में इक्विटी की आवश्यकता है। 2014 में, उच्च न्यायालय ने फैसला किया कि तीनों दोषियों को फांसी दी जानी चाहिए। हालांकि, बाद में यह मामला सुप्रीम कोर्ट में आ गया और उसे फांसी दे दी गई। वर्तमान में महसूस करें कि परिस्थिति क्या है? वर्तमान में परिस्थिति यह है कि परिवार को यह पता नहीं है कि अदालत की निम्नलिखित तारीख क्या है और उनके कानूनी सलाहकार का नाम क्या है। हित के लिए, उसे अपनी छोटी लड़की के साथ बर्बरता करने वाले व्यक्तियों को फांसी पर लटका देना चाहिए।