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दीपक रावत 3 बार की असफलता के बाद बने IAS ….

वह बदलाव बनिए जो आप दुनिया में देखना चाहते हैं। अगर आप इस रेखा को वास्तविकता बनते हुए देखना चाहते हैं, तो उत्तराखंड के आईएएस अधिकारी दीपक रावत से मिलें। आईएएस अधिकारी होने के बावजूद, दीपक रावत को अभी भी भूमि से संबंधित अधिकारी के रूप में जाना जाता है। सोशल मीडिया पर उनकी बहुत बड़ी फैन फॉलोइंग है। दीपक रावत, आईएएस, जो कुंभ मेला अधिकारी की जिम्मेदारी हैं, के विचार युवाओं में उत्साह बढ़ाते हैं। हर कोई उनकी यात्रा के बारे में जानना चाहता है। इस खास मौके पर हम आपको उनकी जिंदगी से जुड़ी कुछ ऐसी बातें बताएंगे, जो आपको जिंदगी में आगे बढ़ने का हौसला भर देंगी। 1977 में देहरादून, मसूरी में जन्मे दीपक रावत ने संघर्ष से लेकर सफलता तक का लंबा सफर तय किया। उन्हें अपने परिवारों से पॉकेट मनी नहीं मिलती थी।

पिता ने पॉकेट मनी बंद की तो दीपक रावत ने स्कॉलरशिप हासिल कर अपनी मेहनत के दम पर पढ़ाई पूरी की। यूपीएससी की परीक्षा पास की और आईएएस अधिकारी बनकर दिखाया। वो सिर्फ उत्तराखंड ही नहीं बल्कि देश के सबसे ज्यादा लोकप्रिय अफसरों में शुमार हैं। आईएएस दीपक रावत ने मसूरी के सेंट जॉर्ज कॉलेज से अपनी शिक्षा पूरी की। दीपक रावत जब 24 साल के थे, तब पिता ने उनकी पॉकेट मनी बंद कर दी थी। दीपक के पिता ने उनसे साफ तौर पर कह दिया था कि वह अपने खर्चे चलाने के लिए खुद ही कमाई करें। इसके बाद दीपक का जेआरएफ का परीक्षा परिणाम घोषित हुआ और उन्हें 8000 रुपये का वजीफा मिलने लगा। आपको ये जानकर हैरानी होगी कि दीपक रावत स्क्रैप के कारोबार से जुड़ना चाहते थे, लेकिन किस्मत ने उनके लिए कुछ और लिखा था।

स्कॉलरशिप मिलने के बाद दीपक दिल्ली चले गए। यहां वो बिहार के कुछ छात्रों के संपर्क में आए, जो कि यूपीएससी की तैयारी कर रहे थे। दोस्तों की वजह से दीपक भी यूपीएससी की तैयारी करने लगे। वो दो बार असफल रहे, लेकिन इसके बावजूद उन्होंने हार नहीं मानी। तीसरी बार वो सफल तो रहे लेकिन रैंक कम थी। इसलिए उन्होंने चौथी बार परीक्षा दी और आईएएस अफसर बनकर उत्तराखंड पहुंचे। आईएएस बनने के बाद दीपक रावत ने उत्तराखंड में कई बेहतरीन कार्य किए। उन्होंने अपनी कार्यप्रणाली से लोगों पर अपनी अमिट छाप छोड़ी। लॉकडाउन के दौरान जरूरतमंदों की सेवा करने वाले आईएएस दीपक रावत आज भी अपने मिशन में जुटे हुए हैं। उत्तराखंड के हर वाशिंदे को उन पर गर्व है।