हमेशा सही हिंदू धर्म में भी क्योंकि पूजा तथा उनकी परिक्रमा करना बहुत ज्यादा शुभ और महत्वपूर्ण माना गया है बहुत सारे त्योहारों में तो वृश्चिक की बहुत ज्यादा एंड मीका होती है और एक बहन जुड़ा होता है जैसे कि सावित्री व्रत, आंवला नवमी, तुलसी पूजा, अश्वत्थोपनयन व्रत आदि कई ऐसे व्रत और त्योहार हैं। जो सीधा-सीधा पौधों से जुड़े हुए हैं हिंदू धर्म में अगर आपको नहीं पता तो आपको यहां जरूर पढ़ना चाहिए इससे आपके जीवन में अनेक खुशहाली आ सकती है और आपके दुखों का निवारण हो सकता है। जैसे कि वृक्ष की पूजा परिक्रमा करने से आपको यह 10 फायदे मिल सकते हैं जिनका विवरण नीचे किया गया है।
प्रत्येक वृक्ष का गहराई से विश्लेषण करके हमारे ऋषियों ने यह जाना की पीपल और वट वृक्ष सभी वृक्षों में कुछ खास और अलग हैं। इनके धरती पर होने से ही धरती के पर्यावरण की रक्षा होती है। यही सब जानकर ही उन्होंने उक्त वृक्षों के संवरक्षण और इससे मनुष्य के द्वारा लाभ प्राप्ति के हेतु कुछ विधान बनाए गए उन्ही में से दो है पूजा और परिक्रमा।
1. वृक्ष को धरती पर ईश्वर का प्रतिनिधि माना जाता है। इसीलिए इसकी पूजा का अर्थ है ईश्वर या परमेश्वर की पूजा परिक्रमा करना। ऐसे करने से व्यक्ति का संबंधी सीधे परमेश्वर से जुड़ता है।
।।मूलतः ब्रह्म रूपाय मध्यतो विष्णु रुपिणः। अग्रतः शिव रूपाय अश्वत्त्थाय नमो नमः।।
भावार्थ- अर्थात इसके मूल में ब्रह्म, मध्य में विष्णु तथा अग्रभाग में शिव का वास होता है। इसी कारण ‘अश्वत्त्थ’ नामधारी वृक्ष को नमन किया जाता है। -पुराण।।तहं पुनि संभु समुझिपन आसन। बैठे वटतर, करि कमलासन।।भावार्थ- अर्थात कई सगुण साधकों, ऋषियों यहां तक कि देवताओं ने भी में भगवान विष्णु की उपस्थिति के दर्शन किए हैं। -रामचरित मानस>2. हिन्दू धर्मानुसार वृक्ष में भी आत्मा होती है। वृक्ष संवेदनशील होते हैं और उनके शक्तिशाली भावों के माध्यम से आपका जीवन बदल सकता है। इसीलिए इसकी परिक्रमा और पूजा का विधान है।
3. हिन्दू धर्म में परिक्रमा का बड़ा महत्त्व है। इसको ‘प्रदक्षिणा करना’ भी कहते हैं, जो षोडशोपचार पूजा का एक अंग है। प्रदक्षिणा का प्राथमिक कारण सूर्यदेव की दैनिक चाल से संबंधित है। जिस तरह से सूर्य प्रात: पूर्व में निकलता है, दक्षिण के मार्ग से चलकर पश्चिम में अस्त हो जाता है, उसी प्रकार वैदिक विचारकों के अनुसार अपने धार्मिक कृत्यों को बाधा विध्नविहीन भाव से सम्पादनार्थ प्रदक्षिणा करने का विधान किया गया। व्यक्ति का संपूर्ण जीवन ही एक चक्र है। वृक्ष की परिक्रमा से वृक्ष का सानिध्य मिलता है जिसके चलते उसकी सकारात्मक उर्जा हमारा नकारात्मक ऊर्जा को सकारात्मकता में बदल देती है।
4. एक उत्तरी ध्रुव और दूसरा दक्षिणी ध्रुव। वृक्ष इन दोनों ध्रुवों से कनेक्ट रहकर धरती और आकाश के बीच ऊर्जा का एक सकारात्मक वर्तुल बनाते हैं। वृक्ष का संबंध या जुड़ाव जितना धरती से होता है उससे ज्यादा कई गुना आकाश से होता है। वैज्ञानिक शोधों से यह बात सिद्ध हो चुकी है कि धरती के वृक्ष ऊंचे आसमान में स्थित बादलों को आकर्षित करते हैं। यदि आप किसी प्राचीन या ऊर्जा से भरपूर वृक्षों के झुंड के पास खड़े होकर कोई मन्नत मांगते हो तो यहां आकर्षण का नियम तेजी से काम करने लगता है। वृक्ष आपके संदेश को ब्रह्मांड तक फैलाने की क्षमता रखते हैं और एक दिन ऐसा होता है जबकि ब्रह्मांड में गया सपना हकीकत बनकर लौटता हैं।
5. अक्सर आपने देखा होगा की पीपल और वट वृक्ष की परिक्रमा का विधान है। इनकी पूजा के भी कई कारण है। स्कन्द पुराण में वर्णित पीपल के वृक्ष में सभी देवताओं का वास है। पीपल की छाया में ऑक्सीजन से भरपूर आरोग्यवर्धक वातावरण निर्मित होता है। इस वातावरण से वात, पित्त और कफ का शमन-नियमन होता है तथा तीनों स्थितियों का संतुलन भी बना रहता है। इससे मानसिक शांति भी प्राप्त होती है।
6. अश्वत्थोपनयन व्रत के संदर्भ में महर्षि शौनक कहते हैं कि मंगल मुहूर्त में पीपल वृक्ष की नित्य तीन बार परिक्रमा करने और जल चढ़ाने पर दरिद्रता, दु:ख और दुर्भाग्य का विनाश होता है। पीपल के दर्शन-पूजन से दीर्घायु तथा समृद्धि प्राप्त होती है। अश्वत्थ व्रत अनुष्ठान से कन्या अखण्ड सौभाग्य पाती है।7. शनिवार की अमावस्या को पीपल वृक्ष की पूजा और सात परिक्रमा करके काले तिल से युक्त सरसो के तेल के दीपक को जलाकर छायादान करने से शनि की पीड़ा से मुक्ति मिलती है। अनुराधा नक्षत्र से युक्त शनिवार की अमावस्या के दिन पीपल वृक्ष के पूजन से शनि पीड़ा से व्यक्ति मुक्त हो जाता है। श्रावण मास में अमावस्या की समाप्ति पर पीपल वृक्ष के नीचे शनिवार के दिन हनुमान की पूजा करने से सभी तरह के संकट से मुक्ति मिल जाती है।8.श्रीमद्भागवत् में वर्णित है कि द्वापरयुग में परमधाम जाने से पूर्व योगेश्वर श्रीकृष्ण इस दिव्य पीपल वृक्ष के नीचे बैठकर ध्यान में लीन हुए। इसके नीचे विश्राम या ध्यान करने से सभी तरह के मानसिक संताप मिट जाते हैं तथा मन स्थिर हो जाता है। स्थिर चित्त ही मोक्ष को प्राप्त कर सकता है या कोई महान कार्य कर सकता है। वृक्ष हमारे मन को स्थिर और शांत रखने की ताकत रखते हैं। चित्त की स्थिरता से साक्षित्व या हमारे भीतर का दृष्टापन गहराता है। हमारे ऋषि-मुनि, बुद्ध पुरुष, अरिहंत, भगवान आदि सभी पीपल के नीचे बैठकर ही ध्यान करते थे। उक्त वृक्ष के नीचे ही बैठकर बुद्ध और महावीर स्वामी ने तपस्या की तथा वे ज्ञान को उपलब्ध हो गए। पूर्ण दृष्टा हो गए।
9. वृक्ष के आसपास रहने से जीवन में मानसिक संतुष्टि और संतुलन मिलता है। वृक्ष हमारे जीवन के संतापों को समाप्त करने की शक्ति रखते हैं। माना कि वृक्ष देवता नहीं होते लेकिन उनमें देवताओं जैसी ही ऊर्जा होती है। हाल ही में हुए शोधों से पता चला है कि नीम के नीचे प्रतिदिन आधा घंटा बैठने से किसी भी प्रकार का चर्म रोग नहीं होता। तुलसी और नीम के पत्ते खाने से किसी भी प्रकार का कैंसर नहीं होता। इसी तरह वृक्ष से सैकड़ों शारीरिक और मानसिक लाभ मिलते हैं। इन सभी बातों को ध्यान में रखते हुए हमारे ऋषि-मुनियों ने पर्यावरण संरक्षण हेतु वृक्ष से संबंधित अनेक मान्यताओं को प्रचलन में लाया।
10. कुछ देर किसी भी अच्छे वृक्ष के नीचे बैठने से शरीर और मन के सारे त्रास मिट जाते हैं। इसीलिए हमें वृक्ष की परिक्रमा और पूजा करना चाहिए क्योंकि इससे वृक्ष भी हमें अपना मित्र समझकर हमारे दुख और संताप को मिटाने में हमारी सहायता करते हैं।