10 जून को लगने जा रहा है इस वर्ष का पहला सूर्य ग्रहण इस वर्ष के पहले सूर्य ग्रहण होने के कारण लोग काफी उत्साहित हैं। इसे देखने के लिए साथ ही साथ इसके कुछ दुष्परिणाम होंगे तथा कुछ बस यह आपकी राशि पर निर्भर करता है। कि आप के ऊपर कौन सी दृष्टि पड़ने वाली है इससे पूर्व 26 मई को ही पहला चंद्र ग्रहण लगा था इस तरह से 15 दिन के अंतराल में दो ग्रहण लगना भी किसी संजोग से कम नहीं माना जा रहा है धार्मिक मान्यताओं के अनुसार जब सूर्य ग्रहण चंद्र ग्रहण को अशोक घटना माना जाता है तो इसके विपरीत कई लोग इसे देखने के लिए उत्साहित होते हैं कि उनका वर्णन शब्दों में किया नहीं जा सकता। हिंदू पंचांग के अनुसार वैशाख माह की अमावस्या तिथि को लगने वाला यह सूर्यग्रहण वलयाकार सूर्य ग्रहण होगा जो भारतीय समयानुसार 10 जून को दोपहर 01 बजकर 42 मिनट से शाम 06 बजकर 41 मिनट तक चलेगा। जब भी चंद्रमा पृथ्वी के चक्कर काटते हुए सूर्य और पृथ्वी के बीच आ जाता है तो इस घटना को सूर्यग्रहण कहते हैं। ऐसे में इस दौरान सूर्य की रोशनी कुछ देर के लिए पृथ्वी तक नहीं पहुंचती है। यह सूर्य ग्रहण भारत में नहीं देखा जा सकेगा। इस सूर्यग्रहण को अमेरिका, कनाडा, यूरोप, ग्रीन लैंड, रूस और एशिया के कुछ ही भागो में देखा जा सकेगा। भारत में सूर्यग्रहण नहीं होने के कारण इसका सूतककाल मान्य नहीं होगा। जब भी ग्रहण लगता है तो सूर्यग्रहण होने की स्थिति में 12 घंटे पहले और चंद्रग्रहण में 9 घंटे पहले से सूतककाल प्रभावी माना जाता है। आइए जानते हैं इस सूर्यग्रहण से जुड़ी कुछ खास-खास बातें…
1- कब है साल पहला सूर्यग्रहण
इस वर्ष कुल 2 सूर्यग्रहण है, पहला 10 जून को और दूसरा 04 दिसंबर को लगेगा। 10 जून को सूर्य ग्रहण को भारतीय समयानुसार दोपहर को 1 बजकर 42 मिनट से शुरू होकर शाम के 06 बजकर 41 मिनट तक चलेगा। यह ग्रहण वलयाकार सूर्यग्रहण होगा। इससे पहले 26 मई को चंद्रग्रहण लगा था।
2- कहां -कहां दिखाई देगा सूर्यग्रहण
साल का पहला सूर्यग्रहण भारत में नहीं देखा जा सकेगा। यह सूर्यग्रहण अमेरिका, यूरोप और एशिया, उत्तरी कनाडा, ग्रीनलैंड और रूस में दिखाई देगा।
3-भारत में सूतककाल
यह सूर्यग्रहण भारत में दिखाई नहीं देगा। इस कारण से भारत में सूतककाल मान्य नहीं होगा। ऐसे में किसी भी तरह के शुभ कार्य या पूजा अनुष्ठान में कोई भी बाधा नहीं आएगी।
4- क्या होता है सूतककाल
हिंदू धर्म में सूतक काल का विशेष महत्व होता है। सूतक काल में किसी भी तरह का शुभ कार्य करना वर्जित होता है। सूतक काल सूर्य और चंद्रग्रहण के दौरान लगता है, इसके अलावा किसी परिवार में शिशु के जन्म लेने पर उस घर के सदस्यों को कुछ समय के लिए सूतक काल में बिताना पड़ता है। सूतक काल चंद्र ग्रहण लगने से 9 घंटे पहले और सूर्य ग्रहण लगने से 12 घंटे पहले मान्य होता है। सूतक काल में पूजा पाठ और किसी भी तरह का शुभ कार्य नहीं किया जाता है। सूतक काल लगते ही मंदिरों के दरवाजे बंद कर दिए जाते हैं।
5- सूतककाल में न करें ये काम
सूतक काल में भोजन ग्रहण नहीं किया जाता है। ग्रहण के दौरान गर्भवती महिलाओं का घर से बाहर जाना मना होता है। क्योंकि ग्रहण के दौरान दूषित सूर्य की किरणें निकलती हैं। जिस कारण से गर्भ में पल रहें बच्चें और उसकी मां के लिए यह नुकसानदायक हो सकता है। ग्रहण के दौरान सिलाई या बुनाई का काम नहीं करना चाहिए। ग्रहण में भगवान के मंत्रों का जाप करना चाहिए और मंदिरों के दरवाजे बंद रखना चाहिए। ग्रहण में न ही मांस, मदिरा का सेवन करना चाहिए।
6- सूर्यग्रहण के बाद क्या करें
ग्रहण के बाद घर के मंदिर में गंगा जल छिड़क कर शुद्ध करें। देवी-देवताओं की प्रतिमाओं को भी गंगा जल से शुद्ध करें और इसके बाद ही पूजा करें। ऐसा करने से घर के मंदिर में व्याप्त ग्रहण की नकारात्मक छाया नष्ट हो जाएगी।
7- क्या होता है वलयाकार सूर्य ग्रहण
10 जून को लगने वाला सूर्यग्रहण वलयाकार सूर्यग्रहण होगा। सूर्य ग्रहण तीन तरह का होता है। पूर्ण, वलयाकार और आंशिक सूर्य ग्रहण। जब चंद्रमा पूरी तरह से सूरज को ढ़क लेता है तब पृथ्वी पर अंधेरा छा जाता है। इस स्थिति में ग्रहण को पूर्ण सूर्य ग्रहण कहा जाता है। आंशिक सूर्य ग्रहण- जब चंद्रमा सूर्य को पूरी तरह नहीं ढ़क पाता तो इसे खंडग्रास या आंशिक सूर्य ग्रहण कहा जाता है वलयाकार सूर्य ग्रहण- वलयाकार सूर्य ग्रहण में चंद्रमा सूर्य का करीब 99 प्रतिशत भाग ढक लेता है और सूर्य का कुछ बाहरी हिस्सा ही दिखाई देता है। इसमें सूर्य का बाहरी हिस्सा गोलाई में एक चमकदार कंगन की तरह दिखाई देता है और बीच के हिस्सा में छाया रहती है। इसे ही वलयाकार सूर्य ग्रहण कहते हैं।
8- सूर्यग्रहण का धार्मिक महत्व
पौराणिक मान्यता के अनुसार जब समुद्र मंथन चल रहा था तब उस दौरान देवताओं और दानवों के बीच अमृत पान के लिए विवाद पैदा शुरू होने लगा, तो इसको सुलझाने के लिए भगवान विष्णु ने मोहिनी का रूप धारण किया। मोहिनी के रूप से सभी देवता और दानव उन पर मोहित हो उठे तब भगवान विष्णु ने देवताओं और दानवों को अलग-अलग बिठा दिया। लेकिन तभी एक असुर को भगवान विष्णु की इस चाल पर शक पैदा हुआ। वह असुर छल से देवताओं की लाइन में आकर बैठ गए और अमृत पान करने लगा। देवताओं की पंक्ति में बैठे चंद्रमा और सूर्य ने इस दानव को ऐसा करते हुए देख लिया। इस बात की जानकारी उन्होंने भगवान विष्णु को दी, जिसके बाद भगवान विष्णु ने अपने सुदर्शन चक्र से दानव का सिर धड़ से अलग कर दिया। लेकिन उस दानव ने अमृत को गले तक उतार लिया था, जिसके कारण उसकी मृत्यु नहीं हुई और उसके सिर वाला भाग राहु और धड़ वाला भाग केतु के नाम से जाना गया। इसी वजह से राहु और केतु सूर्य और चंद्रमा को अपना शत्रु मानते हैं। इसलिए राहु-केतु सूर्य और चंद्रमा का ग्रास कर लेते हैं। इस स्थिति को ग्रहण कहा जाता है।