चाणक्य द्वारा लिखी गयी नीतियों में हर समस्या का हल मिलता है , चाणक्य नीतियों में ज़िन्दगी को किस तरह से जीना है और किस तरह से अपनी ज़िन्दगी में खुशाली लानी है यह सब लिखा गया है और बहुत से लोगो ने इसे अपना कर अपने जीवन सफल भी किया है। इसी नीति में वह घरो का वर्णन भी करते है की किस तरह के घर शमशान के सामान होते है। आइए जानते हैं इसके बारे में
न विप्रपादोदककर्दमानि, न वेदशास्त्रध्वनिगर्जितानि।
स्वाहा-स्नधास्वस्ति-विवर्जितानि, श्मशानतुल्यानि गृहाणि तानि।।
अर्थात, जिन घरों में ब्राह्मणों का सम्मान नहीं होता, जहां वेद आदि शास्त्रों की ध्वनि नहीं गूंजती, जिस घर में अग्निहोत्र अर्थात हवन आदि शुभकर्म नहीं होते हैं, उसे श्मशान के बराबर समझना चाहिए। वह घर मुर्दों का निवास स्थान ही माना जाएगा। वहीं जीवनी शक्ति नहीं होती।
आमन्त्रणोत्सवा विप्रा गावो नवतृणोत्सवा:।
पत्युत्साहयुता नार्य: अहं कृष्णरणोत्सव:।।
अर्थात, किसी ब्राह्मण के लिए खाने का निमंत्रण मिलना ही पर्व है। गायों के लिए ताजी नई घास मिलना ही पर्व के बराबर है। पति में उत्साह की बढ़ोतरी होते रहना ही स्त्रियों के लिए उत्सव के समान है। श्लोक के आखिर में चाणक्य बोलते हैं कि मेरे लिए प्रभु श्रीकृष्ण के चरणों में अनुराग ही उत्सव के बराबर है।