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भगवान शिव आखिर क्यों धारण करते हैं मुंडमाला अपने गले में इसके पीछे का जाने असली रहस्य

हिंदू धर्म में कई चीजें अभी भी ऐसी ही दिन के बारे में कई लोग पूर्ण तरीके से अवगत नहीं हैं जैसे कि भगवान महादेव की लीला है। बहुत ही ज्यादा पर अंपायर है जिसे आज तक असल में कोई नहीं जान पाया है ऐसा बताया जाता है कि भगवान शिव जितने भोले हैं कि वह अपने श्रद्धालुओं की भक्ति से सबसे जल्दी प्रसन्न हो जाते हैं और उन्हें मनचाहा फल दे देते हैं और जल्द से जल्द अपने सरदारों की इच्छा को पूरी करते हैं जिस तरीके से देवों के देव महादेव की सभी महिमा अपरंपार है उसी प्रकार उनके कई ऐसे रूप स्वरूप हैं जिनकी महिमा है और भी ज्यादा अपरंपार है। महादेव अपने शरीर पर त्रिशूल, नाग, चन्द्रमा एवं मुंडमाला जैसी कई चीजों को धारण करते हैं। पुराणों के मुताबिक, महादेव जो कुछ भी अपने शरीर पर धारण करते हैं, उसके भी पीछे कोई न कोई राज छुपा हुआ है। आइए जानते हैं उस राज के बारे में जिसके कारण महादेव मुंडमाला धारण करते हैं।

महादेव के गले की मुंडमाला इस बात का प्रतीक है कि महादेव मृत्यु को भी अपने वश में किए हुए हैं। पुराणों के अनुसार, महादेव के गले की यह मुंडमाला भगवान शिव एवं माता सती के प्रेम का प्रतीक भी है। ऐसी प्रथा हैं कि एक बार नारद मुनि के उकसाने पर माता सती ने महादेव से 108 शिरों वाली इस मुंडमाला के राज के बारे में जिद करके पूछा था। महादेव के लाख मनाने पर भी जब माता सती नहीं मानी तब महादेव ने इसके राज को माता सती से बताया था।

भोलेनाथ ने माता सती से कहा कि मुंडमाला के ये सभी 108 सिर आपके ही हैं। भोलेनाथ ने देवी से कहा कि इससे पूर्व आप 107 बार जन्म लेकर अपना शरीर त्याग चुकी हैं तथा यह आपका 108वां जन्म है। अपने बार-बार शरीर त्याग करने के बारे में जब देवी सती ने महादेव से पूछा कि ऐसी क्या वजह है? कि सिर्फ मैं ही शरीर का त्याग करती हूं आप नहीं। देवी सती के इस प्रश्न पर महादेव ने उन्हें कहा कि मुझे अमरकथा का ज्ञान है इसलिए मुझे बार-बार शरीर का त्याग नहीं करना पड़ता। इस पर देवी सती ने भी महादेव से अमरकथा सुनने की इच्छा व्यक्त की। ऐसा कहा जाता है कि जब महादेव माता सती को अमरकथा सुना रहे थे तो माता सती कथा के मध्य ही सो गईं तथा उन्हें अमरत्व की प्राप्ति नहीं हो पाई। इसका नतीजा यह हुआ कि देवी सती को राजा दक्ष के यज्ञ कुंड में कूदकर आत्मदाह करना पड़ा।